Posts

Showing posts from June, 2022

नाम वापसी के दिन भी नहीं माने नाराज नेता: नगर सरकार के सभी वार्डो में बागी बिगाड़ेंगे खेल :कई नेताओं की प्रतिष्ठा लगी दांव पर, १०१ प्रत्याशियों के बीच होगा हार-जीत का संघर्ष

  आगर मालवा । नगर सरकार के चुनाव में प्रत्याशियों की तस्वीर बुधवार शाम को नाम वापसी के बाद पूरी तरह साफ हो गई है। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों में वर्चस्व को लेकर रस्साकशी दिखाई देगी। लगभग सभी वार्डों में निर्दलीय भी मैदान में डंटे हुए है। भाजपा व कांग्रेस दोनों ही दलों के बागियों ने अधिकृत प्रत्याशियों की नींद उडा रखी है। ऊँट किस करवट बैठेगा यह कहना फिलहाल आसान नहीं है। जैसे- जैसे वक्त बीतेगा और मतदान की तारीखें नजदीक आयेगी। घमासान उतना ही चरम पर पहुंच जायेगा।  बुधवार को नाम वापसी के बाद जो तस्वीर सामने आयी है वह यह बताती है कि भाजपा में भी अब कांग्रेस की तरह अंर्तकलह होने लगी है वहीं कांग्रेस अब भी खेमों में बंटी नजर आती है। आगर नगर पालिका के २३ वार्डो में कुल १६३ लोगों ने नामांकन दाखिल किये थे। समीक्षा उपरांत यह संख्या १६१ रह गई। २२ जून नाम वापसी की अंतिम दिनांक को नाम वापसी के बाद १०१ प्रत्याशी मैदान में बचे है। अब चुनावी रंग पूरे उफान पर है। सभी वार्डों में शतरंज की तरह शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। कई नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। गौरतलब रहे कि अब की बार अध्यक्ष का

उपेक्षा के दर्द से उपजी बगावत न बन जाये नासूर

  त्वरित टिप्पणी सत्यनारायण शर्मा अनुशासन के लिए पहचान रखने वाली भाजपा में भी अब 'कलह' खलकर सामने आ गई है।नगर के 23 वार्डो में कई के हालात बदतर है।अधिकतर स्थानों पर निर्दलीयों का दर्द 'उपेक्षा'है।किसी अन्य को टिकिट देकर उन्हें उनके ही घर मे 'बेगाना' बना दिया गया है।नगर सरकार के इस चुनाव में वार्ड को फतेह करने के लिए  'कार्यकर्ता' पता नही कितने वर्षों से मेहनत कर रहा होता है।मगर बड़े चुनावो की तरह अबकी बार नगर सरकार के चुनाव में भी 'पैराशूट' व 'प्रभावी'प्रत्याशियों ने माहौल बिगाड़ दिया।छोटे कार्यकर्ताओ को दरकिनार कर बड़े पदाधिकारियो को जब 'मेंडेट' से नवाजा गया तो छोटे कार्यकर्ता की कराह से कई निर्दलीयों का जन्म हो गया।जिसके नतीजे क्या होंगे यह लगभग सभी को पता है।प्रश्न यह उठता है कि आखिर पदों पर आसीन नेताओ की ऐसी क्या मजबूरी थी कि वे लीडर बनकर नगर सरकार बनाने की राह आसान करने की बजाय खुद ही मैदान में कूदकर राह का रोड़ा बन गए। पदों पर आसीन बड़े पदाधिकारियो को 'पिता' की भूमिका अदा करते हुवे अपने कार्यकर्ताओं को मौका देना था।अगर वे