इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी 2020 को मनेगी
इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनेगाी। इसका कारण यह है कि सूर्य देव 14 जनवरी रात 2:08 बजे उत्तरायण में होंगे यानि सूर्य देव धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसी वजह से सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का पर्व संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी सुबह से शुरू होगा। पुण्य काल सुबह 7.21 से शाम 5.55 बजे तक रहेगा। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी का कहना है कि मकर संक्रांति का पर्व हिंदुओं के देवता सूर्य ग्रह को समर्पित है। जब सूर्य गोचरीय भ्रमण चाल के दौरान धनु राशि से मकर राशि या दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर स्थानांतरित होता है, तब संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है।
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि मकर संक्रांति पर्व 14 को ही मनाया जाता है लेकिन इस बार दान-पुण्य 15 जनवरी सुबह से शुरू होगा। इस वर्षसूर्यदेव 14 जनवरी 020 की रात को 2.06 बजे उत्तरायण होंगे। मतलब सूर्य चाल बदलकर धनु राशि से मकर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसी के चलते संक्रांति का पर्व इस बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति में पुण्यकाल का भी विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में हो तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है। चूंकि इस बार सूर्य 14 जनवरी की रात को मकर राशि में प्रवेश करेगा, इसलिए संक्रांति का पुण्यकाल अगले दिन यानी 15 जनवरी को माना जाएगा। शास्त्रानुसार मकर सक्रांति का पुण्यकाल का समय सक्रांति लगने के समय से 6 घंटे 24 मिनट पहले और सक्रांति लगने के 16 घंटे बाद तक माना गया है। पुण्यकाल के समय दिन का समय होना जरूरी बताया है जो इस बार 15 जनवरी को रहेगा। अत: शास्त्रानुसार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाना शास्त्रसम्मत है।
शुभ मुहूर्त ---
संक्रांति काल - 07:19 बजे (15 जनवरी 2020)
पुण्यकाल - 07:19 से 12:31 बजे तक
महापुण्य काल - 07:19 से 09:03 बजे तक
संक्रांति स्नान - प्रात:काल, 15 जनवरी 2020
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है| इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कर्मों का विशेष महत्व है| ऐसी धारणा है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है| इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है|
जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है-
"माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥"
मकर संक्रांति से जुड़ी कई प्रचलित पौराणिक कथाएं हैं| ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भानु अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके लोक जाते हैं| शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं| इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है|
ज्योतिषी पं. दयानन्द शास्त्री जी ने कहा कि अधिकाशत: 14 जनवरी को संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने पर ही संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। यह परिवर्तन इस साल 14 जनवरी की रात 2 बजे के बाद हो रहा है। 12 बजे के बाद दूसरा दिन लग जाता है। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन तिल के लड्डू से निर्मित वस्तुओं के दान का खास महत्व होता है।
मकर संक्रांति पर्व के दिन दान-पुण्य का खास महत्व
मकर संक्रांति के दिन तिल से निर्मित वस्तुओं के दान का खास महत्व बताया गया है। मुख्य रूप से अन्न दान, तीर्थ स्नान, गंगा स्नान आदि करना चाहिए। मंदिरों सहित गरीब, निर्धन और निराश्रित लोगों को कपड़े, भोजन, कंबल आदि और गायों को हरा चारा देने से अनंत पुण्यदायी फल प्राप्त होता है।
15 जनवरी 2020 से पुनः आरम्भ होंगें विवाह और मांगलिक कार्य
देवगुरु बृहस्पति 9 जनवरी को शाम 7.53 बजे पूर्व दिशा से उदय होंगे। सूर्य धनु राशि से मकर राशि में 14 जनवरी रात 2.06 बजे उत्तरायण होगा। इस दौरान 15 जनवरी मकर सक्रांति से सूर्य और बृहस्पति दोनों ग्रह शुद्ध रुप में रहेंगे, ऐसे में 15 जनवरी से विवाह सहित शुभ कार्यों का मुहूर्त रहेगा।
क्यों है मकर संक्रांति पर्व का इतना महत्व ?
जहाँ तक इस पर्व से जुड़ी विशेष बात है तो मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है जो ठंड के घटने का प्रतीक है। इस बार तो मकर संक्रांति का पर्व महाकुम्भ के अवसर पर पड़ रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जो मकर राशि के शासक थे। पिता और पुत्र आम तौर पर अच्छी तरह नहीं मिल पाते इसलिए भगवान सूर्य महीने के इस दिन को अपने पुत्र से मिलने का एक मौका बनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं।
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में जुटते हैं लाखों लोग
सर्दी के मौसम के समापन और फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक समझे जाने वाले मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर लाखों लोग देश भर में पवित्र नदियों में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं। देश के कई भागों में तो लोग इस दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद रात के अंधेरे में ही नदियों में स्नान शुरू कर देते हैं। इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, मध्यप्रदेश के उज्जैन ओर ओंकारेश्वर,हरियाणा में कुरुक्षेत्र, गुजरात के कुबेर भंडारी, राजस्थान में पुष्कर और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में श्रद्धालु इस अवसर पर लाखों की संख्या में एकत्रित होते हैं।
इस पर्व पर कोलकाता के निकट गंगासागर के तट पर लगने वाला मेला काफी प्रसिद्ध है। अयोध्या में भी इस पर्व की खूब धूम रहती है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र सरयू में डुबकी लगाकर रामलला, हनुमानगढ़ी में हनुमानलला तथा कनक भवन में मां जानकी की पूजा अर्चना करते हैं। हरिद्वार में भी इस दौरान मेला लगता है जिसमें श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।
देश के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति पर्व की अलग ही दिखती दिखती हैं छटा
मकर संक्रांति पर्व देश के विभिन्न भागों में अलग अलग नामों से भी मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल 'संक्रान्ति' कहा जाता है। मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब में यह त्योहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल अंधेरा होते ही होली के समान आग जलाकर तिल, गुड़, चावल तथा भुने हुए मक्का से अग्नि पूजन करके आहुति डाली जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहते हैं। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवडि़यां आदि आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं।
मकर संक्रांति पर दान का है बड़ा महत्व
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष रूप से फलदायी माना गया है। देश के विभिन्न मंदिरों को इस दिन विशेष रूप से सजाया जाता है और इसी दिन से शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी खत्म हो जाता है। इस पर्व पर उत्तर प्रदेश में खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है।
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि वस्तुएं अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन कूड़ा करकट जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है।
दक्षिण भारत में रहेगी पोंगल की धूम
पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाकर खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। असम में मकर संक्रांति को माघ−बिहू अथवा भोगाली−बिहू के नाम से मनाया जाता है तो राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
जानिए पौराणिक तथ्य
मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
समझें मकर संक्रांति की तारीखें बदलने के कारण को
रतलाम के ज्योतिषाचार्य पंडित अभिषेक जोशी ने बताया कि 16वीं, 17 वीं शताब्दी में 9, 10 जनवरी को 17वीं, 18 वीं शताब्दी में 11, 12 जनवरी को, 19वीं, 20 वीं शताब्दी में 13, 14 जनवरी को 20वीं, 21 वीं शताब्दी में 14 और 15 जनवरी को सक्रांति का पर्व मनाया जाने लगा। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमते हुए 4 विकला पीछे होती है। इसे अयनांश भी कहते हैं। अयनांश धीरे-धीरे बढ़ता है। वर्तमान में यह 23 डिग्री 56 विकला है।
नीमच के पंचांगकर्ता पण्डित भगीरथ जोशी के अनुसार सूर्य द्वारा विलम्ब से मकर में प्रवेश करने के कारण ही संक्रांति की तारीखें भी परिवर्तित होती रहती हैं। इसलिए संक्रांति कभी 14 तो कभी 15 जनवरी को आती है। 2021 में संक्रांति फिर से 14 जनवरी को आएगी। पंडित भगीरथ जोशी एवं पंडित अभिषेक जोशी के अनुसार आगामी सन् 2086 के बाद पूर्ण रूप से मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी जो पूर्णतया शास्त्रोक्त होगी।