शोभायात्रा के साथ हुवा कथा का समापन,अंतिम दिन विधायक राणा भी हुएं शामिल 

सुसनेर। हर वस्तु की प्राप्ति के साथ वियोग भी है, हर एक समय मनुष्य की भक्ति करना जीवन का मूल उदेश्य होना चाहिए। सांसारिक कार्य करने के बाद पश्चाताप हो सकता है, परंतु ईश्वरीय भक्ति साधना, ध्यान व परोपकार के पश्चात पश्चाताप नहीं आनंद व आत्म संतोष की अनुभूति प्राप्त होती है। उक्त विचार डाक बंगला तिराहे के समीप आफिसर कालोनी में आयोजित की गई सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन कथावाचक पंडित कैलाश नारायण पंचाेली ने व्यक्त किये। उन्होनें कथा में उपस्थित श्रृद्धालुओं को सम्बोंधित करते हुएं कहां कि अमृत से मीठा अगर कुछ है तो वह भगवान का नाम है। परमात्मा सत्यता के मार्ग पर प्राप्त होते हैं। मन, बुद्धि, इंद्रियों की वासना को समाप्त करना है तो हृदय में परमात्मा की भक्ति का दीप जलाना पड़ेगा। ईश्वर का प्रतिरूप ही परोपकार है। कथावाचक ने कई कथाओं का श्रवण श्रद्धालुओं को कराया जिसमें प्रभु कृष्ण के 16 हजार शादियां के प्रसंग के साथ सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथायें सुनाई। इन कथाओं को सुनकर सभी भक्त भाव विभोर हो गए। कथा समापन के दौरान पंडित पंचोली ने भक्तों को भागवत को अपने जीवन में उतारने की बात कही जिससे सभी लोग धर्म की और अग्रसर हो। क्षेत्रिय विधायक राणा विक्रमसिंह, पूर्व नप अध्यक्ष चतुर्भूजदास भूतडा ने शामिल होकर श्रीमद् भागवतपुराण व कथावाचक पंडित पंचोली का स्वागत का पुजन किया। उसके बाद शौभायात्रा निकालकर के कथा का समापन किया गया। जिसकी शुरूआत ढोल ढमाके के साथ आफिसर कालोनी से की गई। शौभायात्रा में श्रीमद् भागवत ग्रंथ को सर पर उठाकर के सिंचाई विभाग स्थित मनकामनेश्वर महादेव मंदिर ले जाया गया। जहा ससम्मान भागवत गीता को विराजित किया गया। कथा के समापन अवसर पर बडी संख्या में श्रद्धालुजन माैजूद थे।



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