चैत्र नवरात्री 2020:करोड़ो आस्थावानों का ठिकाना है देवास की चामुंडा टेकरी

देवास- देवास का नाम ही दो देवियों के वास से प्रचलन में आया है। ऊंची पहाड़ियों पर विराजित करोड़ों लोगों की आस्था का यह सदन बरसों पहले ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रहा है।कहा जाता है कि देवास की दो रियासतों के राजाओं की कुल देवियों के मंदिर स्थापित हैं। साल में चैत्र और शारदेय नवरात्रि में देशभर से लाखों श्रद्धालु माता टेकरी पर आकर मां के दरबार में शीश नवाते हैं। सच्चे मन से मांगी गई मुरादें मां के दरबार में पूरी होती आई हैं


अभी तक मिले प्रमाणों के अनुसार पहाड़ी पर स्थित मां चामुंडा देवी की मूर्ति लगभग दसवीं शताब्दी की बताई जाती है।टेकरी पर एक सुरंग भी है जिससे करीब दो हजार साल पूर्व के इतिहास की जानकारी मिलती है। बताया जाता है कि यह उज्जैन और देवास के बीच गुप्त रूप से आनेजाने के लिए तैयार की गई थी। इस 45 किमी लंबी सुरंग का दूसरा छोर उज्जैन की भर्तहरि गुफा के पास निकलता है। किंवदंती कथा तो यह भी है कि उस समय उज्जैन के राजा भर्तहरि मां चामुंडा की आराधना के लिए आते थे।हालांकि यह सुरंग किसने और क्यों बनवाई इस संबंध में देवास के इतिहास में कोई ठोस जानकारी मौजूद नहीं है। संत शीलनाथ महाराज ने भी इसी सुरंग में अपनी साधना की थी। इसलिए इसे बाद में शीलनाथ गुफा का नाम दिया गया। शीलोत्कीर्ण मूर्ति और बीज मंत्र इसके खासियत है। स्वामी विष्णुतीर्थ तथा सामर्थ शीलनाथ ने यहां आकर अपना ठिकाना बनाया तो कुमार गंधर्व जैसे संगीत मनीषी ने टेकरी की गोद में आकर संगीत की साधना की और शिखर तक पहुंचे।


मां तुलजा भवानी (बड़ी माता)


टेकरी पर दक्षिण दिशा की ओर मां तुलजा भवानी यानी बड़ी माता का मंदिर स्थित है। इतिहासकारों के मुताबिक यह मंदिर भी चामुंडा माता मंदिर के समकालीन है। मंदिर में तुलजा माता की आधी प्रतिमा (ऊपरी हिस्सा) है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां तुलजा और मां चामुंडा दोनों बहनें हैं। प्राचीन समय में यह मंदिर छोटा लेकिन अब यहां प्रशासन द्वारा काफी निर्माण कार्य करवाकर इसे दर्शनार्थियों के सुविधाजनक बनाया गया है।



मां चामुंडा (छोटी माता)


टेकरी पर उत्तर दिशा की ओर मां चामुंडा का मंदिर है। यह देवास सीनियर रियासत के राजाओं की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं। इतिहास में उल्लेखित जानकारी के अनुसार मां चामुंडा की प्रतिमा चट्टान में उकेरकर बनाई गई है। पुराविदों ने इस प्रतिमा को परमारकालीन बताया है। कुछ इतिहासकारों ने इस प्रतिमा को र आठवीं-नौवीं शताब्दी का बताया है। प्रतिमा की ऊंचाई 3.60 मीटर है। देवी के एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में खड़ग, तीसरे में ढाल और चौथे हाथ में नरमूंड है। मंदिर परिसर में शिव-काल भैरव का मंदिर है। धार्मिक मान्यता तो यह भी कहती हैं कि मां चामुंडा की यह प्रतिमा पहाड़ चीरकर स्वयं प्रकट हुई है।


रमणीय है माता का दरबार 
कालका देवी, अन्न्पूर्णा माता का मंदिर, खो-खो माता, अष्टभुजादेवी, दक्षिणाभिमुखी हनुमान मंदिर, कुबेर माता का मंदिर भी हैं। शीलनाथजी की गुफा भी है यहां मां चामुंडा माता मंदिर से कुछ नीचे की ओर योगीराज शीलनाथजी महाराज की तपोभूमि भी है। यहां पर उनकी वह गुफा भी है जिसमें बैठकर वे ध्यान लगाते थे। कहते हैं इस गुफा से उज्जैन और अन्य स्थानों पर जाने के लिए गुप्त रास्ते भी हैं। गुफा में शंकर जी की पींडी और पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर भी है।


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