किसकी प्रतिष्ठा दांव पर: कमलनाथ, सिंधिया या शिवराज

मध्यप्रदेश विधानसभा के 24 विधानसभा उपचुनावों में एक प्रकार से कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर है क्योंकि दोनों को ही इन चुनावों में एक-दूसरे पर बीस सिद्ध करना है और देखने वाली बात यही होगी कि दोनों में से अंतत: उन्नीस कौन साबित होता है। कमलनाथ को फिर से अपनी सरकार बनाना है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को जनता की अदालत में सरकार गिराने के औचित्य और खासकर ग्वालियर-चम्बल संभाग में अपना प्रभाव यथावत है यह साबित करना है। इन दोनों की प्रतिष्ठा की लड़ाई में यदि कुछ दांव पर है तो वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार, क्योंकि नतीजों के बाद ही यह तय होगा कि सरकार बनी रहेगी या कमलनाथ फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।


पन्द्रह साल का सत्ता का वनवास समाप्त होना कांग्रेस का त्रिकोण पर आश्रित था जिनमें कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह थे। इनमें से एक कोण अब भाजपा के पाले में है, तो सवाल यही है कि उस तीसरे कोण की भरपाई कांग्रेस में कोई एक व्यक्ति कर पायेगा या फिर कुछ नेताओं का मिला-जुला प्रयास फिर से कांग्रेस की सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त करेगा। कुछ सर्वे रिपोर्ट से कमलनाथ गदगद हैं और उन्हें भरोसा हो चला है कि फिर से उनकी सरकार बनेगी, इसलिए अब वे एक्शन मोड में आकर आत्मविश्‍वास से लबरेज होकर फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं और स्वयं सारे सूत्र अपने हाथ में विधानसभा चुनाव की तरह रखे हुए हैं।


जहां तक कांग्रेस का सवाल है उसके सामने दो बड़ी चुनौतियां ये हैं एक तो सर्वे के आधार पर सही उम्मीदवारों का चयन करे और सारे कांग्रेसजन एकजुट होकर चुनावी अभियान में भिड़ें और दूसरा है इन सभी क्षेत्रों में अपने संगठनात्मक ढांचे को बूथ से लेकर विधानसभा क्षेत्रों तक चुस्त-दुरुस्त करे। पहली जरुरत है ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से जो कमजोरी आई है उसका मुकाबला पार्टी ग्वालियर-चम्बल संभाग में कैसे करेगी, उसके दो कोण तो तैयार हैं लेकिन तीसरा कोण वह कैसे मजबूत करेगी। इस मजबूती के लिए उसके पास कोई एकमात्र चेहरा उस अंचल में दिग्विजय सिंह के बाद नहीं है जिसका अपना प्रभाव हो, ऐसी स्थिति में विभिन्न जातियों व समूहों को अपने साथ जोड़ने के लिए कुछ कद्दावर और प्रदेश स्तर के नेताओं का एकसाथ इन क्षेत्रों में उपयोग करे। इन क्षेत्रों के जातिगत समीकरणों को देखते हुए पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव यदि एक स्वर और एकजुट होकर सक्रिय होते हैं तो फिर कांग्रेस को अपनी सरकार बनने के प्रति कुछ उम्मीद रखना चाहिये। इसके लिए यह भी जरुरी है कि इन तीनों नेताओं के स्वर और प्रयास ही एकजुट न हों बल्कि इनके हाथ मिलने के साथ ही दिल भी आपस में मिलें।


ग्वालियर-चम्बल संभाग में ठाकुर, ब्राह्मण और यादव मतदाताओं का भी अच्छा-खासा असर है और ये चार चेहरे मिलकर कांग्रेस के लिए वह तीसरा कोण बन सकते हैं जो यहां धराशायी हो चुका है। दलित मतदाताओं को भी ग्वालियर-चम्बल संभाग में साधना होगा, इसके लिए फिलहाल जाटव मतदाताओं में कांग्रेस का स्थानीय चेहरा बनकर फूलसिंह बरैया काफी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। कांग्रेस को इन बड़े चेहरों के साथ इस अंचल में बेहतर प्रदर्शन करना है तो क्षेत्रीय स्तर पर अपेक्षाकृत प्रभावशाली नेताओं डॉ. गोविंद सिंह, के.पी.सिंह, बालेन्दु शुक्ला, अशोक सिंह को भी एकजुट करना होगा। कांग्रेस की सरकार फिर बन पायेगी या नहीं उसका दारोमदार खासकर ग्वालियर-चम्बल संभाग के नतीजों पर ही निर्भर करेगा, क्योंकि उसके सामने बदले हुए राजनीतिक परिवेश में सबसे बड़ी चुनौती ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा और प्रभात झा के साथ ही भाजपा के मजबूत संगठन और संघ की अनुषांगिक संगठनोंं के समर्पित कार्यकर्ताओं से मिलेगी। वैसे भाजपा में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, इसका पहला अंदाजा राज्यसभा चुनाव में अपने कोटे के दो मत कम मिलने से हो गया है और दोनों ही विधायक भले ही अलग-अलग इलाकों के हों, लेकिन दलित वर्ग से आते हैं। इनका असंतोष इस मायने में विशेष अर्थ रखता है कि दलित मतदाता 16 क्षेत्रों में काफी प्रभावशाली हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में दलित मतदाताओं ने बड़े पैमाने पर बसपा और भाजपा के स्थान पर कांग्रेस को वोट दिए थे, राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा के दलित चेहरे पूर्व मंत्री व गुना के विधायक गोपीलाल जाटव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्थान पर कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह को वोट दिया है। कुछ चेहरे ऐसे हैं जिनका असंतोष सतह पर आ गया है तो जो अंदर ही अंदर जो अनमने हैं उन्हें भी पूरी तरह सक्रिय करना भाजपा के लिए जरुरी है। वैसे भाजपा में असंतोष का असर सामान्यत: चुनाव परिणामों को प्रभावित नहीं करता लेकिन कांग्रेस का असंतोष उसका बना-बनाया खेल बिगाड़ देता है।


 अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत की नाराजगी खुलकर सामने आ गयी है तो पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी कभी नाराज हो जाते है, तो कभी खुश हो जाते हैं, इसलिए आगे चलकर उनकी क्या भूमिका रहेगी यह भी देखने वाली बात होगी। जिन क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे हैं वहां भाजपा कार्यकर्ताओं में कहीं मामूली तो कहीं ज्यादा असंतोष होने की खबरें भी आ रही हैं। भाजपा ने फिलहाल तय कर लिया है कि दल बदल कर आये सभी 22 पूर्व विधायकों को वह चुनाव मैदान में उतारेगी। इसे भाजपा के पुराने कार्यकर्ता किस सीमा तक पचा पायेंगे इस पर भी चुनाव परिणाम बहुत कुछ निर्भर करेंगे। चूंकि भाजपा उपचुनावों को लेकर किसी भी प्रकार की गफलत नहीं करना चाहती इसलिए नये भाजपाइयों को संघ और पार्टी की विचारधारा के साथ समाहित करने के लिए ऐसा फार्मूला तलाश कर रही है ताकि वह नये-नवेले लोगों को पार्टी की मूल विचारधारा को समझा पाये और उस पर चलना आरम्भ करने के लिए उनको तैयार करे। भाजपा अभी से एक ऐसा तंत्र विकसित करना चाहती है ताकि उपचुनाव के समय यदि कोई असहज स्थिति सामने आये तो उसे दुरुस्त करने के लिए उसके पास माकूल व्यवस्था हो।


उपचुनावों में कांग्रेस की एक रणनीति पार्टी छोड़कर भाजपा के टिकट पर लड़ने वाले अपने विद्रोहियों को आइना दिखाने की है, इसलिए वह उनके पुराने बयानों और बातों को ताजा कराने की हरसंभव कोशिश करेगी। इस लड़ाई को जनता बनाम दलबदलू में परिवर्तित करने के मकसद से ही “जनता देगी अपना जवाब“ नारा कांग्रेस ने उछाल दिया है। भाजपा की रणनीति अपनी सरकार की उपलब्धियों के साथ ही 15 माह की कमलनाथ सरकार पर आरोपों की घटाटोप बौछार करते हुए अपनी अभी बनी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की उपलब्धियां उससे बेहतर बताने की कोशिश करेगी तो 15 साल के कार्यकाल में उसने जो सुशासन दिया उसे आधार बनाकर कांग्रेस को आइना दिखायेगी। कांग्रेस और भाजपा दोनों भलीभांति जानते हैं कि 24 विधानसभा उपचुनावों में हर क्षेत्र में अलग-अलग मुद्दे हावी रहेंगे और इसीलिए भाजपा हर क्षेत्र में अलग-अलग संकल्प-पत्र लेकर मैदान में उतरेगी तो कांग्रेस ने भी इन क्षेत्रों के लिए 24 पुस्तिकाएं तैयार कर ली हैं जिसमें वहां की स्थानीय परिस्थितियों, जातिगत समीकरणों और कांग्रेस सरकार द्वारा उन क्षेत्रों के लिए क्या-क्या किया गया के साथ ही जीत का गुर क्या हो सकता है यह भी समाहित किया गया है। इस प्रकार 24 संकल्प-पत्रों और 24 पुस्तिकाओं को दोनों ही दल अपनी जीत की कुंजी मानकर चलेंगे।


और यह भी


 कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही अपने-अपने पक्ष में चुनाव नतीजे लाने के लिए अपनी ही टीम में अंतिम समय में सेल्फ गोल करने के माहिर नेताओं को चिन्हित कर इस प्रकार की पुख्ता व्यवस्था करना होगी कि अवसर पाते ही वह अपनी टीम के खिलाफ गोल न दाग पायें। दिग्विजय सिंह के छोटे भाई पूर्व सांसद व कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह का ताजा बयान कांग्रेस को चेताने के लिए पर्याप्त है कि जो सर्वे रिपोर्टस आई हैं उसके अनुसार 12-12 सीटें दोनों पार्टियों को मिलेंगी। इस प्रकार से तो शिवराज की सरकार बनी रहेगी क्योंकि बारह विधायक जीतने पर उसके विधायकों की संख्या 119 हो जायेगी जो कि बहुमत से अधिक है। इसी प्रकार भाजपा में भी कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं, जो ऐसा कर सकते हैं या द्विअर्थी संवाद बोल कर बना बनाया खेल बिगाड़ सकते हैं लेकिन कांग्रेसी ऐन मौके पर सेल्फ गोल करने में अधिक माहिर और सिद्धहस्त हो चुके हैं। लक्ष्मण सिंह ने एक नेक सलाह कांग्रेस को जरुर दी है कि अकेले कमलनाथ-दिग्विजय सिंह या कोई और नेता कांग्रेस को चुनाव नहीं जिता सकता क्योंकि चुनाव जिताने का असली काम तो कार्यकर्ता और संगठन करता है, अभी हम इन क्षेत्रों में संगठन को मजबूत बना रहे हैं जबकि भाजपा के पास पूर्व से मजबूत संगठन है।


 


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