शब्द संचार साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन 6 अक्टूबर 2011 को बाबा बैजनाथ की पावन नगरी से शुरू हुवा है। लाल माटी आगर की धरा से यह समाचार पत्र अखबारों के महासमुंद्र में भी संघर्ष करते हुवे सुरज को दीपक की रोशनी दिखाने का दुस्साहस अपने पाठकों के दम पर कर रहा है। पाठको का आशीर्वाद व स्नेह बना रहे। आपके सहयोग से ही आगर जिले का यह दीपक प्रज्वलित होता रहेगा।
श्रावण विशेष:नर्मदा के पावन तट पर ओंकार ,ममलेश्वरम
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ओंकारेश्वर, नर्मदा नदी में स्थित एक अद्वितीय द्वीप 4 कि.मी. लंबा व 2कि.मी. चौड़ा यह द्वीप, चारों ओर नर्मदा नदी से घिरा छोटा पहाड़ दिखाई पड़ता है। आकाश से यदि इसे देखा जाये तो यह ॐ चिन्ह के सामान प्रतीत होता है। इसे ओंकारेश्वर कहे जाने के पीछे के कई कारणों में से एक कारण यह भी है। ॐ को एक आदियुगीन मौलिक ध्वनि माना जाता है जिससे सबकी उत्पत्ति हुई है।ऐसा माना जाता है कि सतयुग में जब श्री राम के पूर्वज, इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धता, नर्मदा स्थित ओंकारेश्वर पर राज करते थे, तब ओंकारेश्वर की चमक अत्यंत तेज थी। इसकी चमक से आश्चर्य चकित होकर नारद ऋषि भगवान् शिव के पास पहुंचे तथा उनसे इसका कारण पूछा। भगवान् शिव ने कहा कि प्रत्येक युग में इस द्वीप का रूप परिवर्तित होगा। सतयुग में यह एक विशाल चमचमाती मणि, त्रेता युग में स्वर्ण का पहाड़, द्वापर युग में तांबे तथा कलयुग में पत्थर होगा। पत्थर का पहाड़, यह है हमारे कलयुग का ओंकारेश्वर।ओंकारेश्वर एक जागृत द्वीप है। इस द्वीप के वसाहत का भाग शिवपुरी कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी काल में यहाँ ब्रम्हपुरी नगरी एवं विष्णुपुरी नगरी भी हुआ करती थीं। तीनों मिलकर त्रिपुरी कहलाते थे।ओंकारेश्वर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग अवश्य है। तथापि ओंकारेश्वर में केवल यही नहीं है। हमारे देश में कोई भी महत्वपूर्ण मंदिर अकेले नहीं होता, बल्कि उसके साथ कई छोटे-बड़े मंदिर एवं परिक्रमा पथ भी होते हैं। आईये हम एक साथ इस प्राचीन व पवित्र द्वीप के पवित्र इतिहास व भूगोल का समीप से अनुभव करते है
ओंकारेश्वर मंदिर
मान्धाता महल
ओंकारेश्वर परिक्रमा
ओंकारेश्वर द्वीप के चारों ओर १६कि.मी. लंबा परिक्रमा पथ है। परिक्रमा पथ हमारे देश के अधिकतर मंदिरों का अभिन्न अंग है। परिक्रमा पथ कभी गर्भगृह की होती है तो कभी सम्पूर्ण पवित्र क्षेत्र की। अधिकांशतः कई छोटे-बड़े मंदिर व आश्रम तथा कई बार कुछ गाँव भी पवित्र क्षेत्र का भाग होते हैं। भक्तगण मंदिर आकर केवल भगवान् के दर्शन ही नहीं करते, अपितु मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं।मैं तो यह परिक्रमा नहीं कर पायी, किन्तु मैंने सुना कि यह परिक्रमा कठिन नहीं है। हालाँकि कुछ स्थानों पर पथ उतार-चढ़ाव लिए हुए भी है। यह परिक्रमा पथ कई मंदिरों एवं आश्रमों से होकर जाती है जैसे, खेड़ापति हनुमान मंदिर, ओंकारनाथ आश्रम, केदारेश्वर मंदिर, रामकृष्ण मिशन आश्रम, मारकंड आश्रम जिसमें कृष्ण की १२ मीटर ऊंची प्रतिमा है, नर्मदा-कावेरी संगम जहां कुबेर तपस्या कर यक्षों का राजा बना था, ऋण मुक्तेश्वर मंदिर, धर्मराज द्वार, गौरी सोमनाथ मंदिर, पाताली हनुमान मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर एवं शिव की एक विशाल प्रतिमा।ओंकारेश्वर मंदिर चारों ओर से नर्मदा से घिरा द्वीप है।
ममलेश्वर मंदिर
ममलेश्वर मंदिर या अमलेश्वर मंदिर अथवा अमरेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग का आधा भाग है। यह मंदिर नर्मदा के दक्षिण तट पर, गोमती घाट के समीप, मुख्य भूमि पर स्थापित है। कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन बिना ओंकारेश्वर की तीर्थ यात्रा सम्पूर्ण नहीं होती।ममलेश्वर मंदिर एक भित्तियों से घिरे परिसर के भीतर निर्मित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसकी देखरेख एवं मरम्मत करता है। इस परिसर में ७ विभिन्न मंदिर हैं। मंदिर वास्तुकला के अनुसार ममलेश्वर मंदिर परिसर में प्राचीन वास्तुशिल्प का आभास होता है। जब आप इस मंदिर परिसर के चारों ओर भ्रमण करेंगे, तराशी हुई विशाल पाषाणी भित्तियों से घिरे आप स्वयं को कई काल पीछे अनुभव करेंगे। मुख्य मंदिर के बाहर नंदी मंडप देखने लायक है।ममलेश्वर मंदिर में एक अनोखी प्रथा है, लिंगार्चना। इसमें प्रतिदिन हजार बाणलिंगों की आराधना की जाती है जो मुख्य शिवलिंग के चारों ओर संकेंद्रित वृत्तों में रखी हुई हैं। मुझे इस आराधना के दर्शन का सौभाग्य यहाँ तो प्राप्त नहीं हो सका, पर महेश्वर में मुझे इस आराधना के दर्शनों का सुख अवश्य प्राप्त हुआ।इन मंदिरों के अतिरिक्त काशी विश्वनाथ एवं एक विष्णु मंदिर भी है जहां भक्तगण दर्शन के लिये आते हैं।
ओंकारेश्वर में नर्मदा
नर्मदा की आराधना किये बिना ओंकारेश्वर के दर्शन संभव नहीं। नर्मदा नदी मान्धाता पहाड़ी के चारों ओर तो बहती ही है जिसके ऊपर मुख्य ओंकारेश्वर मंदिर निर्मित है, यह यहाँ के दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिरों, ममलेश्वर तथा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के मध्य से भी होकर बहती है।
तवा हमारे रसोईघर की सबसे मूलभूत चीजों में से एक है। इसके बिना किचन संपूर्ण नहीं है। आमतौर पर हर किचन में आपको तवा देखने को मिल जाएगा। क्योंकि, जिस किचन में तवा नहीं होगा तो वहां रोटी बन पाना भी संभव नहीं है। साधारण तौर पर भी इतना खास महत्व रखने वाले तवे के ऐसे कई महत्व भी है, जो उस घर के लोगों के लिए बहुत लाभकारी है। वास्तु शास्त्र में घर से जुड़ी हुई बहुत सी चीजों को अच्छा और बुरा बताया गया है। इन चीजों में रसोई घर का सामान भी आता है। वास्तु के अनुसार चीजों व्यवस्थित न हो तो यह अपशगुन का कारण बनती हैं। इस प्रकार रसोई घर में भी बहुत सी चीजे होती हैं तो किसी न किसी काम में तो आती हैं लेकिन अगर उन्हें हमें ठीक प्रकार इस्तेमाल न करें तो यह घर में बुरी शक्त्यिों या दरिद्रता का कारण बन सकती हैं। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार, रसोईघर में किसी विशेष स्थान पर,सावधानी पूर्वक तवा रखने से अनेक लाभ हो सकते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री का मानना है कि, अगर व्यक्ति उन तरीकों को व्यवस्थित तौर पर करेगा तो उसके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होगी। या यूं कहें कि,उसकी किस्मत के बंद दरवाजे खुल जाएंगे
आगर-मालवा(शब्द संचार) विधानसभा निर्वाचन-2023 अन्तर्गत आगर-मालवा जिले के विधानसभा क्षेत्र-165, सुसनेर व 166, आगर(अजा) की मतगणना पॉलिटेक्निक कॉलेज आगर में जिला प्रशासन व पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था के बीच शांतिपूर्ण सम्पन्न हुई। मतगणना प्रातः 08 बजे से शुरू हुई जिसमें सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गणना प्रारंभ की गई, उसके आधे घंटे बाद 08ः30 बजे से ईव्हीएम की गणना प्रारंभ हुई। दोनों विधानसभा में कुल 22-22 राउण्ड में मतगणना के बाद निर्वाचन परिणाम की घोषणा रिटर्निंग अधिकारी द्वारा की गई, प्रत्येक राउण्ड व पोस्टल बैलेट की गणना के बाद विधानसभा सुसनेर से इंडियन नेशनल कांग्रेस प्रत्याशी भैरोसिंह ‘‘बापू’’ तथा आगर से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी माधव गेहलोत उर्फ मधु गेहलोत विजयी घोषित किए गए। विजयी प्रत्याशी भैरोसिंह ‘बापू‘ को रिटर्निंग अधिकारी सुसनेर मिलिन्द ढ़ोके तथा मधु गेहलोत को रिटर्निंग अधिकारी आगर सत्येन्द्र बैरवा द्वारा निर्वाचन प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-165, सुसनेर में कुल 08 उम्मीदवार थे, जिनमें से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी भैरासिंह
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा कोई और होगा।मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान नहीं होंगे मुख्यमंत्री। यह भविष्यवाणी वाणी इंदौर (मूलरूप से भैसाना)के ज्योतिषाचार्य पंडित दिनेश शास्त्री ने शुक्रवार 8 दिसंबर को ही कर दी थी। पंडित शास्त्री के अनुआर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की कुंडली मे ग्रह परिवर्तन की स्थिति पैदा कर रहे हैं। वर्तमान में कुम्भ राशि को शनि की साढ़ेसाती चल रही है। कुंडली के दशम भाव पर राहू और शनि की शत्रु दृष्टि है, जो वर्तमान पद से हटाता है। परंतु दशम भाव में सूर्य - मंगल की युति होने से केंद्र में महत्वपूर्ण पद प्राप्त होगा।शिवराज सिंह चौहान का जन्म 05/03/1959 को समय- 12:00 PM को बुदनी (म.प्र.) में हुआ। इनकी जन्म राशि मकर और प्रचलित नाम से कुम्भ राशि बनती है। वसुंधरा राजे को भी नही मिलेगी कुर्सी वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च, 1953 को मुंबई में शाम 4 बजकर 45 मिनट पर हुआ था। ज्योतिष गणना के मुताबिक फिलहाल वसुंधरा राजे की जन्म कुंडली मे राहु की महादशा में बुध की अंतर्दशा है। ये दशा जून 2025 तक रहेगी। जन्म राशि वृश्चिक पर वर्तमान में राहू और शनि की शत्रु दृष्टि है, जो प