समधी और समधन के मुकाबले में कसौटी पर है 'लोकप्रियता '

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित डबरा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी मुकाबला रिश्ते के समधी और समधन के बीच हो रहा है और इसमें असली कसौटी पर समधन इमरती देवी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में निरंतर उनकी लोकप्रियता में जो इजाफा होता रहा है वह लोकप्रियता कसौटी पर इस मायने में है कि अब भाजपा उम्मीदवार के रूप में वह अपनी उस लोकप्रियता को कायम रख पाती हैं या नहीं जो उन्होंने मतदाताओं के बीच हासिल कर रखी है। यहां के मतदाताओं ने चुनाव दर चुनाव इमरती देवी को हाथों-हाथ आसानी से उनके ही बनाए कीर्तिमान को पीछे छोड़ते हुए नया कीर्तिमान बनाते हुए बड़ी ही आसानी से विधानसभा में पहुंचाया है। उपचुनाव के नतीजे से ही यह पता चल सकेगा लोकप्रियता के जिस पायदान पर इमरती देवी जा पहुंची है उससे आगे निकलती हैं या पीछे खिसक जाती है। इस क्षेत्र में चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार बन गए हैं पर वह वास्तव में त्रिकोणीय होता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बसपा के हाथी की चाल कैसी रहती है।


 


     


डबरा में कांग्रेस से दलबदल कर गई इमरती देवी जो कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में महिला बाल विकास मंत्री थीं, वह भाजपा की शिवराज सिंह चौहान सरकार में भी वही विभाग संभाले हुए हैं, उनका चुनावी मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उनके रिश्ते के समधी सुरेश राजे और बसपा के संतोष गौड़ के बीच हो रहा है। वैसे तो डबरा में इमरती देवी की अच्छी मजबूत पकड़ रही है लेकिन वह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में। जहां तक भाजपा का सवाल है 1998 और 2003 के विधानसभा चुनाव में यह सामान्य क्षेत्र था और भाजपा के आज संकटमोचक माने जाने वाले ताकतवर मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा चुनाव जीते थे। लेकिन जबसे क्षेत्र आरक्षित हुआ है भाजपा उम्मीदवार कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाया है। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए अपने कीर्तिमान को बचाए रखने के लिए भाजपा की इमरती देवी को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। उन्होंने तो दल बदल कर लिया है। अब देखने की बात यही होगी कि उनके समर्थक मतदाताओं ने भी उसी अनुपात में अपना दिल बदला है या नहीं। जहां तक चुनावी जमावट का सवाल है वैसे तो संगठन ने व्यूह रचना कर ही ली है पर असली दारोमदार गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा पर निर्भर करेगा, क्योंकि यह उनका भी निर्वाचन क्षेत्र रहा है।


      


 


कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश राजे और इमरती देवी का 2013 के विधानसभा चुनाव में आमना सामना हो चुका है। अब हालात बदले हुए हैं 2013 के चुनाव में इमरती देवी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मैदान में थी और राजे भाजपा के उम्मीदवार थे। राजे को उन्होंने 33278 मतों के अंतर से पराजित किया था। अभी तक जीतती चली आ रही कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में राजे ताल ठोंक रहे हैं तो इमरती देवी भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में है। इस अदला-बदली को मतदाता किस रूप में लेते हैं यह चुनावी नतीजों में परिलक्षित होगा। क्षेत्र में बसपा का भी असर रहा है। 2008 का पहला विधानसभा चुनाव इमरती देवी ने बसपा उम्मीदवार हरगोविंद जौहरी को 10,630 मतों के अंतर से पराजित कर जीता था। 2018 के विधानसभा चुनाव में इमरती देवी ने भाजपा के कप्तान सिंह को 57446 मतों के भारी अंतर से पराजित किया था। इस बार कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए अनुसूचित जाति की नेता पूर्व मंत्री डॉक्टर विजय लक्ष्मी साधो और अन्य पिछड़े वर्गों की नेता पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष हिना कांवरे को प्रभारी बनाया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में कांग्रेस को सर्वाधिक मत मिले थे, इस आधार पर कांग्रेस का दावा है कि उपचुनाव में उसका उम्मीदवार इमरती देवी को विधानसभा में जाने से रोक देगा। यदि पिछले पांच चुनावों का रिकॉर्ड देखा जाए तो भाजपा को सर्वाधिक 34486 मत 2013 के विधानसभा चुनाव में मिले थे जब उसके उम्मीदवार सुरेश राजे थे। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में इमरती देवी को 2008 के विधानसभा चुनाव में 29134 और 2013 के विधानसभा चुनाव में 67764 तथा 2018 के विधानसभा चुनाव में 90598 मत मिले थे। कांग्रेस इसी आधार पर यह मानकर चल रही है कि यह उसका अपना मजबूत किला है जिसमें भले ही हमारा उम्मीदवार भाजपा में चला गया हो पर भाजपा उसमें सेंध नहीं लगा पाएगी। डबरा में अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंह को मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उपचुनाव को जीतने का दायित्व सौंप रखा है। अशोक सिंह सिंधिया परिवार के विरोधी माने जाते हैं और उनके पिता श्यामाचरण शुक्ल की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे चुके राजेंद्र सिंह भी अपने राजनीतिक जीवन में सिंधिया विरोध की राजनीति करते रहे हैं। अशोक सिंह राज्य सरकार में मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के विरुद्ध कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लोकसभा उपचुनाव लड़ चुके। उन्हें 3 लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुभव है और अब डबरा सहित कुछ अन्य क्षेत्रों की भी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है।


 


 


और अंत में......


 


कांग्रेस ने इमरती देवी को चुनाव में शिकस्त देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर इसलिए लगाने का फैसला किया है क्योंकि वह भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के काफी करीब हैं। कांग्रेस पार्टी में वह हमेशा सिंधिया के पक्ष में खुलकर आवाज बुलंद करती रही हैं। सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया तो सबसे पहले इमरती देवी ने विधानसभा की सदस्यता से अपना इस्तीफा लिखकर दे दिया था। वह यहां तक कहती रही हैं कि महाराज कहेंगे तो कुएं में कूद जाऊंगी। इमरती देवी उसी दिन से क्षेत्र में निरंतर संपर्क कर रही है जबसे उन्होंने त्यागपत्र दिया। अब देखने वाली बात यही होगी कि जिसे कांग्रेस अपना वोट बैंक मानकर चल रही है वह चुनाव नतीजों में उसका निकलता है या फिर या उसे इमरती देवी भाजपा में ले जाने में सफल रहती हैं और दूसरे यह कि बसपा अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराकर जीत-हार के समीकरणों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है या नहीं।


  🔷 लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं। 🔷


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