मतदान के बाद समीकरणों में उलझे हुए है बाजीगर और सिकंदर

 

नगरीय निकाय चुनाव में अबकी बार खासी जोर अजमाईश हुई। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों से कई प्रतिष्ठितों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। जनता किसे पार्षद बनायेगी यह मतपेटियों में बंद हो चुका है। २० जुलाई को ही पता चलेगा कि बाजी किसके हाथ लगी है। मतदान के पूर्व तक सभी अपने आप को विजेता मान रहे है। कई तो अपने आप को अध्यक्ष तक समझने लगे है। आंकलन और समीक्षा के बाद ऊँट किस करवट बैठेगा इसके नतीजे बन और बिगड रहे है । चौराहों पर चर्चा है कि परिणाम के बाद जीतने वाले अपने आप को सिकंदर कहेंगे तो हारने वाले खुद को बाजीगर बतायेंगे। 

जरा हंस भी लिया करो यार

सार्वजनिक जीवन में मुस्कुराता हुआ चेहरा सभी को पसंद आता है। बात अगर राजनीति की हो तो यहां तो मुस्कुराहट लाजमी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने कुछ ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारे जो धीर-गंभीर मुख मुद्रा को लेकर पहचाने जाते है। इसी तरह के एक प्रत्याशी के फ्लेक्स को देखकर टहलने निकले बुजुर्गों ने चर्चा उपरांत चुटकी ली कि कभी हंस भी लिया करो यार...!

ज्यादा मत खाना हाजमा बिगड जायेगा

नगर के २३ वार्डों में से २२ वार्ड में निर्दलीय प्रत्याशी भी किला लडा रहे है। लगभग सभी वार्डों में प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह केक भी है। कार्यकर्ताओं और समर्थकों द्वारा किये जा रहे प्रचार-प्रसार के दौरान अचानक ही यह जुमला उछल गया कि केक देखकर ही खाना कहीं हाजमा न बिगड जाये...? 

हमारी लाज रखना भगवन...

चुनाव के दौरान प्रत्याशियों ने मतदाताओं के साथ भगवान की भी खूब मान-मनोवल की। सभी प्रत्याशी आगर और नलखेडा तक दौड-धूप करते रहे। कई महानुभाव तो ऐसे भी थे जिन्होंने प्रचार प्रसार के दौरान सुबह की शुरूआत दर्शन के साथ का नियम बना लिया था। वैसे यह अलग बात है कि पहले वे छटे चौमसे ही बाबा की चौखट तक पहुंचते थे। 

शोहरत और नाम का नया चस्का

पहले कुछ लोग अपनी छपास भूख मिटाने के लिए अखबारों का सहारा लिया करते थे। आजकल वे सोशल प्लेटफार्म पर ही अपनी खुजली मिटा लेते है। बहुत से लोग तो ऐसे भी है जो अपने परिचितों को सामग्री उपलब्ध करवाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का कहते है। बढा-चढाकर अपने आप का यशोगान तो करवाया ही जाता है। साथ ही खुद को समाजसेवी भी निरूपित किया जाता है। भैया...ये जनता है, सब जानती है कौन कितना दूध का धुला हुआ है।

आखिर करना क्या चाहते हो भाई

चुनाव प्रचार प्रसार के दौरान प्रत्याशी द्वारा खूब भोंगे बजाये गये। जमकर ध्वनि प्रदूषण हुआ। लोगों का जीना दुस्वार कर दिया। सुबह लेकर देर रात तक फिल्मी और देशभक्ति तराने इन प्रचार रथों से गूंजते रहे। कई महानुभाव तो देशभक्ति से ओत-प्रोत गाने बजा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों पार्षद बनते ही देशभक्ति के लिए सीमा पर चले जायेंगे। अरे भाईयों... जरा यह भी सोचों कि बजाये गये गानों का अर्थ क्या है? 


सोशल मीडिया पर भी छिड़ी चुनावी जंग

मैदानी जंग के साथ-साथ सभी प्रत्याशी सोशल प्लेटफार्म पर भी सक्रिय थे। वाट़्सऐप ग्रुप बनाकर मतदाताओं तक अपनी बातें पहुंचाई जा रही थी। फेसबुक फीड, रील, स्टोरी के साथ इंस्टाग्राम पर भी पोस्टें हो रही थी। कुछ पोस्टों के कारण मैदानी जंग सोशल प्लेटफार्म पर भी देखी गई। आरोप-प्रत्यारोप के साथ सोशल प्लेटफार्म पर भी जंग छिडती रही। 

जनसेवा के लिए  राजनीति ही क्यों?

कानफोडू शोरगुल के बीच कई प्रत्याशी के प्रचार रथ से यह अलाउंस किया जाता रहा कि हम राज करने नहीं बल्कि जनसेवा करने मैदान में उतरे है। अरे भैया... अगर आपको जनसेवा करनी है तो राजनीति की आवश्यकता ही क्या? जनसेवा तो बिना राजनीति के भी हो सकती है। शहर ही नहीं प्रदेश भर में ऐसे कई जनसेवक है जो राजनीति से कोसों दूर रहकर जनसेवा करते है। 

आखिरी चर्चा...

मौसम खुशनुमा है ऐसा लगता है मानों धरती माँ ने हरे रंग की चादर ओढ ली हो। सावन भी आज से शुरू हो गया है। भोले के जयकारों के साथ हर तरफ भोले शंभु, भोलेनाथ के जयकारें गुंजते दिखाई देंगे। 
सावन खुद तो आया है,
साथ में त्यौहार लाया है,
देख कर ये सावन की नजाकत
मन खुशियों से भर आया है

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