हनुमान प्राकट्योत्सव 8 अप्रेल 2020 : कैसे बने केसरी नंदन से हनुमान

संकट मोचन, अंजनी सुत, पवन पुत्र हनुमान का जन्मोत्सव चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्रभु की लीलाओं से कौन अपरिचित अंजान है। हनुमान जयंती के दिन बजरंगबली की विधिवत पूजा पाठ करने से शत्रु पर विजय और मनोकामना की पूर्ति होती है।


संकट मोचन हनुमान जी की जन्म कथा
 हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार माने जाते हैं। उनके जन्म के बारे में पुराणों में जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार अमरत्व की प्राप्ति के लिये जब देवताओं व असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया को उससे निकले अमृत को असुरों ने छीन लिया और आपस में ही लडऩे लगे। तब भगवान विष्णु मोहिनी के भेष में अवतरित हुए। मोहनी रूप देख देवता व असुर तो क्या स्वयं भगवान शिवजी कामातुर हो गए। इस समय भगवान शिव ने जो वीर्य त्याग किया उसे पवनदेव ने वानरराज केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। जिसके फलस्वरूप माता अंजना के गर्भ से केसरी नंदन मारुती संकट मोचन रामभक्त श्री हनुमान का जन्म हुआ।


केसरी नंदन मारुती का नाम हनुमान कैसे पड़ा?  
इससे जुड़ा एक जग प्रसिद्ध किस्सा है। यह घटना हनुमानजी की बाल्यावस्था में घटी। एक दिन मारुती अपनी निद्रा से जागे और उन्हें तीव्र भूख लगी।  उन्होंने पास के एक वृक्ष पर लाल पका फल देखा। जिसे खाने के लिए वे निकल पड़े। दरअसल मारुती जिसे लाल पका फल समझ रहे थे वे सूर्यदेव थे। वह अमावस्या का दिन था और राहू सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे। लेकिन वे सूर्य को ग्रहण लगा पाते उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया। राहु कुछ समझ नहीं पाए कि हो क्या रहा है? उन्होनें इंद्र से सहायता मांगी। इंद्रदेव के बार-बार आग्रह करने पर जब हनुमान जी ने सूर्यदेव को मुक्त नहीं किया तो,  इंद्र ने बज्र से उनके मुख पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव मुक्त हुए। वहीं इस प्रहर से मारुती मूर्छित होकर आकाश से धरती की ओर गिरते हैं। पवनदेव इस घटना से क्रोधित होकर मारुती को अपने साथ ले एक गुफा में अंतर्ध्यान हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवों में त्राहि- त्राहि मच उठती है। इस विनाश को रोकने के लिए सारे देवगण पवनदेव से आग्रह करते हैं कि वे अपने क्रोध को त्याग पृथ्वी पर प्राणवायु का प्रवाह करें। सभी देव मारुती को वरदान स्वरूप कई दिव्य शक्तियाँ प्रदान करते हैं और उन्हें हनुमान नाम से पूजनीय होने का वरदान देते हैं। उस दिन से मारुती का नाम हनुमान पड़ा। इस घटना की व्याख्या तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा में की गई है -
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।


हनुमान जयंती व्रत पूजा विधि
इस दिन व्रत रखने वालों को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। व्रत रखने वाले व्रत की पूर्व रात्रि से ब्रह्मचर्य का पालन करें। हो सके तो जमीन पर ही सोये इससे अधिक लाभ होगा। प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर प्रभू श्री राम, माता सीता व श्री हनुमान का स्मरण करें। तद्पश्चात नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नान कर हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित कर विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें। फिर हनुमान जी की आरती उतारें।  इस दिन स्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का अखंड पाठ भी करवाया जाता है। प्रसाद के रुप में गुड़, भीगे या भुने चने एवं बेसन के लड्डू हनुमान जी को चढ़ाये जाते हैं। पूजा सामग्री में सिंदूर, केसर युक्त चंदन, धूप, अगरबती, दीपक के लिए शुद्ध घी या चमेली के तेल का उपयोग कर सकते हैं।पूजन में पुष्प के रूप में गैंदा, गुलाब, कनेर, सूरजमुखी आदि के लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। इस दिन हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने से मनोकामना की शीघ्र पूर्ति होती है।


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