क्या कांग्रेस की पथरीली राहों को सुगम बना पाएंगे मुकुल वासनिक ?

अन्तत: मध्यप्रदेश में प्रदेश कांग्रेस के किसी भी स्थापित नेता से तालमेल बिठाने में विफल रहने के बाद कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया की जगह मुकुल वासनिक को नया प्रभारी बनाया गया है। वासनिक की बतौर प्रदेश प्रभारी यह दूसरी पारी होगी, क्योंकि वे पूर्व में भी राज्य के प्रभारी रह चुके हैं हालांकि इस समय और उस समय के हालातों में जमीन आसमान का अन्तर है। उनकी पहली और दूसरी पारी के बीच राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका है। इस दौरान 15 साल का राजनीतिक वनवास भोगने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार 15 महीने में ही दलबदल के कारण सत्ता से बाहर हो गयी। वासनिक के सामने अब यही चुनौती होगी कि उपचुनाव के माध्यम से क्या फिर से कांग्रेस अपनी उस सत्ता को पा सकती है जो उसे मतदाताओं के जनादेश से मिली थी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी होगी कि पहले वे नेताओं के बीच तालमेल बिठायें और कार्यकर्ताओं में सरकार जाने से जो निराशा आ गयी है उसे उत्साह में बदलें। इसके साथ ही उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और सेवादल के राष्ट्रीय मुख्य संगठक रहे महेन्द्र जोशी को भी आगे लाकर पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए सक्रिय करना चाहिए। देखने की बात यही होगी कि क्या कांग्रेस की अनायास ही जो राहें पथरीली हो गयी हैं और उसकी राह में जो कांटे बिछ गए हैं उसे हटाने व सुगम बनाने में वासनिक सफल हो पायेंगे।
वैसे जैसी कि कांग्रेस की परम्परा रही है दीपक बाबरिया का त्यागपत्र स्वास्थगत कारणों से मंजूर किया गया है लेकिन सब भलीभांति जानते हैं कि उनकी बिदाई के दो मुख्य कारण हैं उसमें पहला यह है कि वे प्रदेश कांग्रेस संगठन व सरकार के बीच समन्वय नहीं बना पाये जबकि दोनों के ही मुखिया कमलनाथ थे। प्रदेश कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता से न तो वे अपना तालमेल बिठा पाये और न ही उन नेताओं में सामंजस्य करा पाये। उनकी पटरी अनेक नेताओं से नहीं बैठ पाई और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनकी नजदीकी अंतत: उनकी बिदाई का कारण बनी। पन्द्रह साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी थी लेकिन पन्द्रह माह के भीतर वे कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं को न तो सरकारी पद दिला पाये और ना ही उनकी कोई पूछपरख सत्ता के गलियारों में बढ़वा पाये। बाबरिया की दूसरी बड़ी चूक यह थी कि वे कांग्रेस जैसे संगठन को एनजीओ स्टाइल में चलाना चाहते थे जबकि इस प्रकार के लोग जमीनी वास्तविकताओं से कम सरोकार रखते हैं और अपने स्वयं की कल्पनाओं के अनुसार वे व्यवहारिक हैं या नहीं के स्थान पर कांग्रेस को अपनी स्वयं की कल्पनानुसार ढालने में लग जाते हैं। सिंधिया के भले ही वे करीबी माने जाते हों लेकिन वे उन्हें कांग्रेस छोड़ने से नहीं रोक पाये और न ही हाईकमान को समय रहते यह बता पाये कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद से सिंधिया कुछ हताश हैं, जबकि अंदरखाने सिंधिया भाजपा से तार जोड़ रहे हैं इसकी जानकारी भी हाईकमान को नहीं दे पाये। जानकार लोगों को इसकी भनक थी कि सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं। शायद यही कारण तो नहीं था कि बाबरिया की पैरवी और सिंधिया समर्थकों की लगातार मांग के बाद भी सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस की कमान नहीं सौंपी गयी।  
सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री कमलनाथ के त्यागपत्र के बाद दीपक बाबरिया ने हाईकमान को फीडबैक देते हुए यह सुझाव दिया कि कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष रखा जाये और प्रदेश अध्यक्ष नये व्यक्ति को बनाया जाये। जबकि अधिकांश लोगों की राय यह है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहें और यदि वे तैयार हों तो नेता प्रतिपक्ष भी उन्हें ही रखा जाए अन्यथा नया नेता चुन लिया जाए। कमलनाथ स्वयं चाहते हैं कि विधायक दल का नेता अलग हो, इसीलिए डॉ. गोविंद सिंह का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ा है। सिंधिया के साथ जो भी विधायक और मंत्री पार्टी छोड़कर गए हैं उनमें सबसे अधिक ग्वालियर-चंबल संभाग के हैं और नेता प्रतिपक्ष के रुप में डॉ. सिंह के अलावा कोई दूसरा चेहरा कांग्रेस के पास नहीं है जो उस अंचल से प्रभावी भूमिका सदन के अंदर निभा सके। बाबरिया प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में बैठकर घंटों कार्यकर्ताओं से मिलते थे, मंत्रियों को बुलाकर उनसे बातचीत करते थे लेकिन इसके कोई कारगर नतीजे सामने नहीं ला पाये। कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश में समन्वय समिति का गठन किया जिसके मुखिया बाबरिया ही थे, इसकी एक बैठक दिल्ली में हो पाई उसके बाद कोई बैठक ही नहीं हुई और प्रदेश की सरकार ही चली गयी। इस प्रकार बतौर महामंत्री चुनौतियों का एक बड़ा पहाड़ वासनिक को उत्तराधिकार में मिला है, इन हालातों को चुस्त-दुरुस्त करने की जिम्मेदारी अब उन पर है। लॉकडाउन की परिस्थितियों के बीच मुकुल वासनिक को नयी पारी की शुरुआत करना है और उपचुनाव की चुनौतियों के बीच तैयारियां करवाना एवं संगठन की गतिविधियों में जो शिथिलता आई उसे भी उन्हें प्राथमिकता से दूर करना होगा।
जहां तक वासनिक का सवाल है वे एक अनुभवी कांंग्रेस नेता और मध्यप्रदेश की अंदरुनी गुटबंदी की जड़े कितनी गहरी हैं उसे भलीभांति जानते हैं। 1980 के दशक में सबसे युवा लोकसभा सदस्य बनने के साथ ही तीन साल तक वे एनएसयूआई और दो साल तक युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के बाद कांग्रेस पार्टी में वे हमेशा एक अहम् नेता रहे हैं, सोनिया गांधी के विश्‍वासपात्रों में उनकी गिनती होती है। वे अपनी दूसरी पारी की शुरुआत जब करने जा रहे हैं तो उनकी दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी जैसे नेताओं से दोस्ताना संबंध काफी काम आयेंगे और वैसे भी प्रदेश में पहले से ही उनकी अपनी टीम है। प्रदेश में कांग्रेस संगठन यदि देखा जाए तो विजिटिंग कार्डधारी पदाधिकारियों से अटा पड़ा है, संगठन के नाम पर आज प्रदेश में प्रदेश व जिला स्तर के डेढ़ हजार से ज्यादा महासचिव और सचिव हैं। प्रदेश कांग्रेस से लेकर जिला कांग्रेस तक कार्यकारी अध्यक्षों की भरमार है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जो प्रत्याशी नहीं बन पाये उन्हें संतुष्ट करने का ही यह नतीजा है कि दिन दूनी रात चौगुनी इनकी संख्या बढ़ती गयी, यहां तक कि यदि प्रदेश कांग्रेस से रिकार्ड तलब किया जाए तो उनके पास भी इसकी पूरी जानकारी मिलेगी, क्योंकि कई लोगों को दिल्ली से तत्कालीन महासचिव बाबरिया ने सीधे पत्र लिख दिये। कई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में प्रदेश कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर रहे मानक अग्रवाल को भरोसा है कि वासनिक सारी चुनौतियां का सामना करने में सफल रहेंगे क्योंकि वे प्रदेश कांग्रेस के सभी छोटे-बड़े नेताओं को जानते-पहचानते हैं और सबकी बात सुनते व सबको साथ लेकर चलते हैं। मध्यप्रदेश की कांग्रेस की राजनीति से वे अनजान नहीं हैं और जितना वे जानते हैं उतना मौजूदा महासचिवों में से कोई नहीं जानता।
और यह भी
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के एक कथित साक्षात्कार के बाद प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर यह चर्चा सरगर्म हो गयी है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने की जानकारी पहले से ही कमलनाथ को थी और क्या वे दिग्विजय सिंह के इस भरोसे के कारण सत्ता गंवा बैठे कि सिंधिया के साथ कोई कांग्रेस विधायक नहीं जायेगा। कमलनाथ से लिए गए एक निजी टेलीविजन के पोर्टल में यह दावा किया गया कि साक्षात्कार में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा है कि उन्हें पता था कि सिंधिया बगावत कर भाजपा का दामन थाम लेंगे लेकिन उसके बावजूद उनकी सरकार गिर गयी, क्योंकि दिग्विजय सिंह ने भरोसा दिया था कि सिंधिया के साथ विधायक नहीं जाय। कमलनाथ ने यह भी जोड़ा कि दिग्विजय सिंह ने ऐसा किसी उद्देश्य से नहीं कहा था बल्कि वे सही अनुमान नहीं लगा पाये। चूंकि इस साक्षात्कार के बाद कांग्रेस की राजनीति में सरगर्मी पैदा होना स्वाभाविक था इसलिए कमलनाथ भी तुरन्त एक्शन में आये उन्होंने कहा कि मैंने ऐसी बात नहीं कही। उनकी सफाई थी कि एक चैनल के पत्रकार अनौपचारिक मुलाकात के लिए उनके निवास पर आये थे और राजनीतिक घटनाक्रम सहित विभिन्न मुद्दों पर अनौपचारिक चर्चा चल रही थी। सरकार गिरने का मुद्दा आने पर मैंने कहा कि मुझे और दिग्विजय को कुछ विधायकों ने विश्‍वास दिया था कि वे वापस आयेंगे और उनकी बात पर हमने भरोसा किया, इस कारण ही हम अपनी सरकार नहीं बचा पाये, मैंने यह नहीं कहा कि दिग्विजय ने झूठा विश्‍वास दिया जिसके कारण सरकार नहीं बची।


◆लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।
◆संपर्क- 09425010804, 07389938090


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