विपक्ष को एकजुट करती सोनिया और धर्मसंकट में राज्य सरकारों को उलझाते भूपेश

   कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तगड़ी घेराबंदी करने के अभियान में भिड़ गयी हैं और इसके लिए उन्होंने शुक्रवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए 22 पार्टियों के प्रमुख नेताओं की बैठक में मोदी की कार्यशैली पर तीखा हमला करते हुए कहा कि कोरोना संकट और लाॅक डाउन से बाहर निकले की केन्द्र सरकार के पास कोई रणनीति नहीं है और शक्तियों का केंद्रीयकरण पूरी तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय में निहित हो गया है। विपक्षी दलों की यह बैठक इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तथा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पहली बार सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हो रही किसी बैठक में शिरकत की। उत्तरप्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए और जिस ढंग से प्रियंका गांधी वाड्रा वहां अपनी सक्रियता बढ़ा रही हैं और सीधे सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भिड़ रही हैं, उसको देखते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती का इस बैठक से दूरी बनाकर रखना स्वाभाविक था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और इस समय देश के दिग्गज राजनेताओं में शुमार शरद पवार, सीताराम येचुरी, उमर अब्दुल्ला, एम.के. स्टालिन, डाॅ. मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, डी.राजा, शरद यादव, जीतनराम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा आदि नेताओं का इस बैठक भाग लेना यह बताता है कि अब विपक्षी पार्टियां एकजुट हो रही हैं। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना का आगाज कर अन्य राज्य सरकारों, खासकर भाजपा व उसकी भागीदारी से चलने वाली सरकारों के लिए एक धर्मसंकट की स्थिति पैदा कर दी है कि किसानों को जिस प्रकार से सीधा लाभ पहुंचा है वह आगे चलकर अन्य राज्यों में कहीं गेमचेन्जर न बन जाये। राज्य सरकारों पर अब यह मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा हो गया है कि उन्हें भी किसानों को खुश करने के लिए इससे मिलती- जुलती कोई योजना कहीं लागू न करना पड़ जाए। सोनिया गांधी ने विपक्षी दल के नेताओं की बैठक की अध्यक्षता करते हुए आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने खुद के लोकतांत्रिक होने का दिखावा करना भी छोड़ दिया है तथा सरकार के मन में गरीबों व मजदूरों के प्रति किसी तरह की दया व करुणा का भाव नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज महज दिखावा है। कोरोना संकट से निपटने के उपायों पर इस बैठक में विस्तार से चर्चा हुई। सोनिया गांधी ने कहा कि सरकार के पास लाॅक डाउन से बाहर निकले की कोई रणनीति नहीं है। इस संकट से निपटने के तौर-तरीकों की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि सारी शक्तियां केन्द्र सरकार की अब केवल पीएमओ में केन्द्रित हो गयी हैं और अन्य मंत्रियों की कोई विशेष भूमिका नहीं बची।


बघेल सरकार लोगों के जीवन में लायेगी बदलाव
                 
    पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शहादत दिवस पर उनकी यादगार को आम गरीबों व किसानों के दिलों में बसाने के उद्देश्य से भूपेश बघेल द्वारा प्रारंभ की गयी राजीव गांधी किसान न्याय योजना का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए 21 मई को आगाज करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना किसानों और लोगों के जीवन में बदलाव लायेगी। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना था कि छत्तीसगढ़ में गरीबों और किसानों को संकट के समय में सीधे मदद पहुंचाने का देश को रास्ता दिखाया गया है। 5750 करोड़ की चार किस्तों में किसानों को मिलने वाली राशि की पहली किस्त 1500 करोड़ रुपये की राशि भूपेश बघेल ने किसानों के खाते में आनलाईन अंतरित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ के किसानों के जीवन में खुशहाली का नया दौर आरम्भ हो गया है। इस कार्यक्रम में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, पी.एल. पूनिया, रणदीप सिंह सुरजेवाला, विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. चरणदास महंत और राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य तथा प्रदेश के जिलों के सांसद, विधायक एवं हितग्राही कृषक शामिल हुए। राहुल गांधी ने कहा कि कोरोना संकट की स्थिति को देखते हुए मैंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आग्रह किया था कि गरीबों को इस वक्त कर्ज की नहीं बल्कि नकद राशि की जरुरत है, इसका बढ़िया रास्ता छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने निकाला है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि छत्तीसगढ़ सरकार संकट के समय में लोगों की कैसे मदद की जा सकती है इसका मार्ग प्रशस्त कर रही है। चाहें कोरोना संकट हो या कोई अन्य विपत्ति हम गरीबों का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे और हमें उनकी मदद के लिए उनके साथ खड़ा होना ही पड़ेगा। श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा कि राज्य सरकार ने गरीब आदिवासी किसानों की मदद के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस योजना के दूसरे चरण में ग्रामीण भूमिहीन मजदूरों को शामिल करने का जो निर्णय किया है वह अपने आप में अनोखा है। ऐसी योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतार कर जन-जन तक लाभ पहुंचाना राजीवजी को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी, क्योंकि राजीवजी की यह सोच थी कि खेती विकास की कुंजी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना था कि इस योजना के माध्यम से हम किसानों व कमजोर वर्ग के लोगों को न केवल सम्मान से जीने का अवसर उपलब्ध करायेंगे बल्कि गरीबी का कलंक मिटाने में भी सफल होंगे। चूंकि इस योजना को जमीनी स्तर पर उतारने और आम किसानों के जीवन स्तर को खुशहाल बनाने वाले विभाग के मुखिया रविन्द्र चौबे हैं इसलिए यह उम्मीद की जाना चाहिए कि यह योजना निचले स्तर तक उसी भावना से पहुंचेगी जिस भावना से इसे लागू किया गया है। रविन्द्र चौबे की गिनती अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री के रुप में एक परिणामोन्मुखी और जमीन से जुड़े मंत्री की रही है।


रस्सी जल गयी लेकिन बल नहीं गये
               


   मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अन्दर धीरे-धीरे व्यापक होते असंतोष और खींचतान के चलते अपनी अच्छी-खासी चलती हुई सरकार को गॅवा देने और पन्द्रह साल बाद ‘वक्त है बदलाव का‘ के नारे के साथ सत्ता में आई पार्टी केवल पन्द्रह माह ही सत्ता में रह पाई। उपचुनावों के बाद प्रदेश में पुनः सत्ता में आने के बुलन्द हौंसले लिए पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए एड़ी-चोटी की ताकत लगा रहे हैं। हालांकि ऐसा लगता है कि अभी भी पार्टी के अन्दर तालमेल का अभाव है और अपनी ढपली अपना राग अलापने के वर्षों से आदी रहे बड़े नेता अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इस पुरानी आदत को नहीं छोड़ पा रहे हैं। चाहे प्रत्याशी चयन का मामला हो या फिर जिला कांग्रेस अध्यक्षों के बदलाव का सवाल हो, इसको लेकर भी पार्टी में मतभेद उभरे हैं। कमलनाथ चाहते हैं कि कभी पार्टी में रहे लेकिन धीरे- धीरे राजनीतिक फलक पर अप्रासंगिक हुए नेताओं और भाजपा के अन्दर 22 लोगों के प्रवेश के बाद उसके कुछ असंतुष्ट हुए लोगों को उम्मीदवार बनाकर उपचुनावों में उतारा जाए। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कमलनाथ आयातित और कुछ फ्यूज बल्बों के सहारे अपनी चुनावी संभावनाओं को चमकीला बनाना चाहते हैं। जिस प्रकार असंतोष उभरकर सामने आ रहा है उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि ‘रस्सी जल गयी लेकिन बल नहीं गये।‘
         प्रदेश में दलबदल और खरीद-फरोख्त को कांग्रेस एक बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया के माध्यम से 22 विधानसभा क्षेत्रों जहां उपचुनाव होना हैं के मतदाताओं से भावनात्मक अपील करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि लोकतंत्र को बचाने बागियों को हराना जरुरी है ताकि एक मिसाल कायम हो सके और फिर कोई भी पार्टी खरीद-फरोख्त न कर सके। 22 बागी हुए पूर्व विधायकों पर निशाना लगाते हुए दिग्विजय ने उनके क्षेत्रों की जनता से अपील की है कि इन विधायकों को बुरी तरह से हरायें। दिग्विजय सिंह ने यहां तक कहा कि अगर आपको कांग्रेस को खत्म ही करना है तो इसके बाद चुनाव में आपके पास मौका होगा और उस समय हराकर कर देना, लेकिन लोकतंत्र को बचाने और वोट की कीमत बरकरार रखने का यह आखिरी मौका है। यदि यह विधायक जीत गए तो एक गलत परंपरा चल पड़ेगी और विधायकों की मंडी लगेगी और बड़े नेता दलाल बन बैठेंगे। दिग्विजय ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि चाहे आप कांग्रेस समर्थक हों या भाजपा के, भाजपा के इन 22 विधायकों को हराना देश के लोकतंत्र के लिए जरुरी है, क्योंकि यदि ये जीत गए तो यह परम्परा हर पार्टी में चल पड़ेगी। जनता चुनाव में वोट दे या न दे, विधायक खरीदो और सरकार बनाओ, राजनीतिक पार्टियां जनता के दरवाजे पर जाने के स्थान पर विधायक खरीदना ज्यादा आसान काम मानेंगी और करेंगी, जनता के वोट की अहमियत ही खत्म हो जायेगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक और अब उनके साथ भाजपा में गये पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि कांग्रेस ने चुनाव जीता सिंधिया के चहरे पर, मुख्यमंत्री बने कमलनाथ और सरकार चला रहे थे दिग्विजय सिंह, इसलिए ऐसी सरकार का जाना तो तय था। इससे यह साफ हो जाता है कि कांगेस के प्रचार के विरुद्ध उपचुनावों में सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों का प्रचार इन दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द ही रहने वाला है।


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