न्यायालय पहुंचकर भक्त के लिए भगवान ने की थी पैरवी:अद्भुत है बाबा बैजनाथ की महिमा

 आगर मालवा (विकास दुबे)। आगर के अधिपति बाबा बैजनाथ की महिमा अद्भत है वे अपने भक्त के लिए न्यायालय पैरवी करने पहुंच गये थे।  



मिली जानकारी के अनुसार 23 जुलाई 1931 को आगर में यह  चमत्कारी घटना घटित हुई थी। नित्य की भांति  बैजनाथ मंदिर में साधना करते हुए जयनारायण बाप जी समाधिस्थ हो गए। दोपहर 3 बजे  ध्यान टूटा तो आप घबराते हुए अपने साथी गोपाल मंदिर के पुजारी पंडित नाथूराम दुबे एवं अध्यापक रेवा शंकर  के साथ बैजनाथ से सीधे आगर की वर्तमान अदालत में पहुंचे। जैसे ही आप अदालत पहुंचे  वकील साथियों ने आपको बधाई दी और कहा की आपको मुवक्किल बाइज्जत बरी हो गया है।वकील साहब ने कहा आप लोग क्यों मजाक कर रहे हैं मैं तो अभी- अभी सीधा बैजनाथ से चला आ रहा हूं।इस पर तत्कालीन न्यायधीश मौलवी मुबारक हसन  ने उन्हें हस्ताक्षर मिसल पर दिखाया और कहां मजाक तो आप कर रहे हैं।आप  समय पर कोर्ट में आ गए थे और पैरवी करते हुए अपनी जोरदार दलीलों से अपने पक्षकार को बरी करवाया। एक अन्य केस की तारीख भी आपने कोर्ट की डायरी में नोट की है।वकील साहब अचंभित होकर  बैजनाथ महादेव भगवान के इस चमत्कार से अभिभूत हो गए और उन्हें समझते देर नहीं लगी की  भगवान ही उनका रूप धारण कर कोर्ट में पधारे थे।इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी  चतुर्भुजदास सक्सेना,पंडित नाथूराम दुबे और उस समय अदालत परिसर में उपस्थित अनेक लोग थे।  मालवा विभूति  सदगुरु श्री नित्यानंदजी बापजी  श्री के परम शिष्य जयनारायण  उपाध्याय का जन्म औदिच्य ब्राह्मण भारद्वाज गोत्रीय परिवार में  23 मार्च 1896 आगर मालवा जिला शाजापुर में बलदेव उपाध्याय के यहां हुआ।आप प्रारंभ से ही आध्यात्मिक साधना एवं साहित्य रचना में रत रहे। आपका विवाह 1911 में शाजापुर निवासी विक्रम  भट्ट की सुपुत्री कलावती देवी से हुआ था।आपने ग्वालियर स्टेट से वकालत की सानिध्य प्राप्त की। आगर कोर्ट में भगवान बैजनाथ ने कोर्ट में मुकदमा  लड़ा और जीता भी। इसके पश्चात आप  नित्यानंद जी बापजी श्री की शरण में चले गए ।सद्गुरु ने कृपा कर आप को आत्मसाक्षात्कार कराया एवं अपने स्वरुप प्रदान किया। आप भक्तों के बीच छोटे बापजी श्री के नाम से प्रसिद्ध हुए आपने भी भक्तों के कल्याण हेतु  अनेक लीला कि आपने सन 1945 में 26 अक्टूबर को (धौसवास) जिला रतलाम मध्यप्रदेश में श्री नित्यानंदजी बापजी श्री के सानिध्य में महासमाधि ली। आपके द्वारा श्री नित्यानंद जी बापजी श्री की महिमा का विस्तार लोक लेखा अंतर तक हुआ आपने हरिद्वार में प्रणव मंदिर की स्थापना क राई।आपके द्वारा अनेक रचनाओं का सृजन किया गया जिनमे हनुमान  विजय, नित्य पाठ दीपिका, सुंदर संदेश, संत रतनमाला आदि रचनाए प्रमुख है।

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